भारत में नकली और घटिया दवाओं की समस्या ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को गंभीर चुनौती दी है। इसे नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार ने एक अभिनव कदम उठाया है—शीर्ष 300 दवा ब्रांडों की पैकेजिंग पर क्यूआर कोड अनिवार्य करना। यह नियम 1 अगस्त 2023 से लागू हो चुका है, और इसका लक्ष्य नकली दवाओं पर रोक लगाना, उपभोक्ताओं को दवाओं की प्रामाणिकता जांचने की सुविधा देना और स्वास्थ्य सेवा में विश्वास बहाल करना है।
क्यूआर कोड पहल: एक क्रांतिकारी कदम
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने 1 अगस्त 2025 को लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस सांसद रचना बनर्जी के सवालों के जवाब में इस पहल की जानकारी दी। उनके अनुसार, शीर्ष 300 दवा ब्रांडों (शेड्यूल H2 के तहत) को अपनी प्राथमिक पैकेजिंग पर क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य है। यदि प्राथमिक पैकेजिंग पर जगह की कमी हो, तो द्वितीयक पैकेजिंग पर यह कोड लगाया जा सकता है।
ये क्यूआर कोड उपभोक्ताओं को मोबाइल ऐप के माध्यम से दवा की प्रामाणिकता, निर्माण तिथि, बैच नंबर और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी जांचने की सुविधा देते हैं। यह तकनीक न केवल उपभोक्ताओं को सशक्त बनाती है, बल्कि नकली दवाओं की पहचान को आसान बनाकर दवा उद्योग में पारदर्शिता भी लाती है।
पहल का विस्तार
ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (DTAB) ने इस पहल को और व्यापक करने का निर्णय लिया है। वैक्सीन, एंटीमाइक्रोबियल्स, नार्कोटिक और साइकोट्रोपिक दवाओं के लिए भी क्यूआर कोड को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। यह कदम उन दवाओं को लक्षित करता है, जो नकली होने की स्थिति में विशेष रूप से खतरनाक हो सकती हैं।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने अपनी वेबसाइट पर इस नियम से संबंधित अधिसूचनाएं और दिशानिर्देश जारी किए हैं। साथ ही, दवा उद्योग को उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाने का निर्देश दिया गया है। CDSCO ने क्यूआर कोड के उपयोग और नकली दवाओं की पहचान के लिए ऑनलाइन गाइडलाइंस भी उपलब्ध कराई हैं।
नकली दवाओं की गंभीर समस्या
भारत में नकली और घटिया दवाओं की समस्या लंबे समय से चिंता का विषय रही है। कुछ तथ्य इसकी गंभीरता को उजागर करते हैं:
- CDSCO के आंकड़े: 2022-23 में, CDSCO ने 96,713 दवा नमूनों का परीक्षण किया, जिनमें से 3,053 नमूने घटिया और 424 नकली या मिलावटी पाए गए।
- AIOCD का अनुमान: ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (AIOCD) के अनुसार, कोविड-19 महामारी के बाद से नकली दवाओं का बाजार में हिस्सा 50% बढ़ा है। पहले जहां 10% दवाएं नकली या घटिया थीं, अब यह आंकड़ा 15% तक पहुंच गया है।
नकली दवाएं न केवल उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं, बल्कि दवा उद्योग की विश्वसनीयता और अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाती हैं। क्यूआर कोड पहल इस समस्या से निपटने का एक प्रभावी उपाय हो सकता है, बशर्ते इसे सही तरीके से लागू किया जाए।
क्यूआर कोड का महत्व और उपभोक्ता सशक्तिकरण
क्यूआर कोड पहल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह उपभोक्ताओं को सशक्त बनाता है। एक साधारण मोबाइल स्कैन के जरिए उपभोक्ता यह सुनिश्चित कर सकता है कि वह जो दवा खरीद रहा है, वह प्रामाणिक है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, जहां नकली दवाओं की पहुंच अधिक है।
हालांकि, इस पहल की सफलता कुछ महत्वपूर्ण कारकों पर निर्भर करती है:
- डिजिटल साक्षरता: क्यूआर कोड को स्कैन करने और जानकारी समझने के लिए उपभोक्ताओं को बुनियादी डिजिटल साक्षरता की आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह एक बड़ी चुनौती है।
- इंटरनेट पहुंच: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के आंकड़ों के अनुसार, केवल 24% ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट पहुंच है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 66% है। ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 14% लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 59% है।
- जागरूकता: उपभोक्ताओं को क्यूआर कोड के उपयोग और इसके लाभों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। स्थानीय भाषाओं में जानकारी और उपयोगकर्ता-अनुकूल ऐप्स की कमी इस प्रक्रिया को जटिल बना सकती है।
चुनौतियां: क्या हैं रास्ते की बाधाएं?
क्यूआर कोड पहल के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनका समाधान किए बिना इसका पूरा लाभ नहीं उठाया जा सकता:
- अनुपालन में पारदर्शिता की कमी: नियम लागू होने के दो साल बाद भी सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि कितनी दवा कंपनियों ने क्यूआर कोड लागू किया है। इस डेटा की अनुपस्थिति से अनुपालन की स्थिति और निगरानी की प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं।
- डिजिटल असमानता: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच डिजिटल पहुंच और साक्षरता में भारी अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क कवरेज, इंटरनेट की लागत और स्थानीय भाषा में सामग्री की कमी क्यूआर कोड की उपयोगिता को सीमित करती है।
- जागरूकता की कमी: कई उपभोक्ता, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, क्यूआर कोड के उद्देश्य और उपयोग से अनजान हैं। इसके लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान की आवश्यकता है।
- तकनीकी सीमाएं: क्यूआर कोड स्कैन करने के लिए स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन जरूरी है, जो ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए चुनौती है।
समाधान: कैसे हो सकती है यह पहल और प्रभावी?
क्यूआर कोड पहल को सफल बनाने के लिए सरकार और संबंधित हितधारकों को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- पारदर्शिता और जवाबदेही: सरकार को नियमित रूप से अनुपालन से संबंधित आंकड़े सार्वजनिक करने चाहिए। यह न केवल विश्वास बढ़ाएगा, बल्कि उद्योग को नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करेगा।
- लक्षित जागरूकता अभियान: स्थानीय भाषाओं में रेडियो, टीवी, सोशल मीडिया और सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष ध्यान देना जरूरी है।
- डिजिटल पहुंच बढ़ाना: टेलीकॉम कंपनियों के साथ साझेदारी कर ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती इंटरनेट सेवाएं और नेटवर्क कवरेज बढ़ाया जाना चाहिए। साथ ही, क्यूआर कोड स्कैनिंग के लिए ऑफलाइन समाधान भी विकसित किए जा सकते हैं।
- उपयोगकर्ता-अनुकूल तकनीक: CDSCO की गाइडलाइंस और ऐप्स को सरल और स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाना चाहिए। साथ ही, फीचर फोन उपयोगकर्ताओं के लिए SMS-आधारित सत्यापन प्रणाली शुरू की जा सकती है।
- उद्योग सहयोग: दवा कंपनियों को क्यूआर कोड लागू करने के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए।
भविष्य की संभावनाएं
क्यूआर कोड पहल न केवल नकली दवाओं पर रोक लगाने में मदद कर सकती है, बल्कि दवा आपूर्ति श्रृंखला में पारदर्शिता और जवाबदेही को भी बढ़ा सकती है। यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, तो यह भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। भविष्य में, इस तकनीक को अन्य स्वास्थ्य उत्पादों और सेवाओं तक विस्तारित किया जा सकता है।
साथ ही, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों को क्यूआर कोड सिस्टम के साथ एकीकृत करके दवाओं की प्रामाणिकता को और मजबूत किया जा सकता है। यह न केवल नकली दवाओं की समस्या को कम करेगा, बल्कि भारत को वैश्विक दवा उद्योग में एक विश्वसनीय नाम के रूप में स्थापित करेगा।
क्यूआर कोड पहल भारत में नकली दवाओं के खिलाफ एक मजबूत हथियार बनने की क्षमता रखती है। हालांकि, इसकी सफलता सरकार, दवा उद्योग और उपभोक्ताओं के बीच सहयोग पर निर्भर करती है। पारदर्शिता, जागरूकता और डिजिटल पहुंच में सुधार के बिना यह पहल अपनी पूरी क्षमता हासिल नहीं कर सकती। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच डिजिटल खाई को पाटना, स्थानीय भाषाओं में सामग्री उपलब्ध कराना और उपभोक्ता शिक्षा पर ध्यान देना इस पहल को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जरूरी है। यदि ये कदम सही दिशा में उठाए जाएं, तो यह पहल न केवल उपभोक्ताओं का विश्वास जीतेगी, बल्कि भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को और सुरक्षित बनाएगी।